त्सोंगमो झील या चंगू झील भारत के सिक्किम राज्य के पूर्व सिक्किम ज़िले में स्थित एक झील है। ३, ७८० मीटर की ऊँचाई पर स्थित इस झील का पानी पास की हिमानियों से आता है। यह सिक्किम की प्रान्तीय राजधानी गंगटोक से ४० किमी दूर है। यहाँ से उत्तर में सड़क मेनमेचो झील से होती हुई नाथू ला की ओर निकलती है जिसके पार तिब्बत की चुम्बी घाटी स्थित है। पूर्व-पूर्वोत्तर में तिब्बत की सरहद केवल ५ किमी दूर है। सर्दियों में इस झील की सतह जम जाती है।
रूमटेक धर्मचक्र केन्द्र
रुमटेक मठ सिक्किम की राजधानी गान्तोक के निकट स्थित एक बौद्ध बिहार है। इसे 'धर्मचक्र केन्द्र' भी कहते हैं।
गुरुडोंग्मार लेक
हिन्दुओं और बौद्धों के बीच लोकप्रिय यह झील सिक्किम की सबसे पवित्र झीलों में एक मानी जाती है। समुद्र तल से 17800 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह झील गंगटोक से 190 किलोमीटर की दूरी पर है। माना जाता है कि झील में हमेशा बर्फ जमी रहती थी और यहां पीने के पानी का अभाव था। जब गुरू पद्मसंभव यहां से गुजर तो स्थानीय लोगों ने उनसे पानी की व्यवस्था करने को कहा। लोगों की इस समस्या से निदान के लिए गुरू ने झील का एक हिस्सा स्पर्श किया और बर्फ पिघल गई। कहा जाता है कि कडाके की ठंड में भी झील का यह हिस्सा बर्फ में तब्दील नहीं होता। इस झील को देखने के लिए हमेशा सैलानियों का आना-जाना लगा रहता है।
कंचनजंघा राष्ट्रीय उद्यान
कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान या कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान सिक्किम, भारत में स्थित एक राष्ट्रीय उद्यान और एक बायोस्फीयर रिज़र्व है। इस उद्यान को अपना नाम कंचनजंगा पर्वत से मिलता है जो ८५८६ मीटर ऊँची है और विश्व की तीसरी सबसे ऊँची शिखर है। इस उद्यान का कुल क्षेत्रफल 1784 वर्ग कि.है जो कि सिक्किम के कुल क्षेत्रफल का २५.१४% है। ज़ेमु हिमनद सहित पार्क में कई हिमनद हैं। कस्तूरी मृग, हिम तेंदुए और हिमालय तहर जैसे वन्यजीव उद्यान में रहते हैं। मनुष्यों द्वारा अभी तक अनन्वेषित यह उद्यान हिम तेंदुआ, हिमालयी काला भालू, तिब्बती एंटीलोप, जंगली गधा, काकड़, कस्तूरी मृग, फ्लाइंग गिलहरी और लाल पांडा का आवास है जो मैगनोलिया, बुरुंश और देवदार के जंगलों के बीच शरण पाते हैं।
नामग्याल इंस्टिट्यूट ऑफ तिबेटॉलोजी
नामग्याल तिब्बत अध्ययन संस्थान भारत में गैंगटॉक की पहाड़ियों में स्थित तिब्बती साहित्य और शिल्प का यह अनूठा भंडार है। भारत में इस प्रकार का एकमात्र संस्थान है। यह समुद्र तल से लगभग 5500 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। सिकिक्म के शासक 11वें चोगयाल, सर ताशी नामग्याल ने 1958 में इसकी स्थापना की थी। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने पहली अक्टूबर, 1958 को इस संस्थान का विधिवत उद्धाटन किया था। इस संस्थान को तिब्बत अध्ययन शोध संस्थान, सिकिक्म के नाम से भी जाना जाता है। पूरे विश्व मे मात्र तीन संस्थान ही इस प्रकार के हें। मास्को में पीपल्स ऑफ एशिया संस्थान और टोक्यो में तोयो बुंको ऐसे दो अन्य संस्थान हैं। यह संस्थान बौध्द दर्शन और बौद्ध धर्म का विश्व विख्यात केन्द्र है। यहां विभिन्न रूपों और आकारों की लगभग 200 प्रतिमाओं, पेंटिंगों, विज्ञान, धर्म, चिकित्सा, ज्योतिष आदि विषयों की पुस्तकों सहित बहुत सी अमूल्य वस्तुएं मौजूद हैं। लेपचा और संस्कृत की पांडुलिपियों सहित प्राचीनकाल की अनोखी वस्तुओं की नामावलियों का यहां बहुत अच्छा संग्रह है।
बाबा हरभजन सिंह मन्दिर
24 नव॰ 2018 - 30 अगस्त 1946 को जन्मे बाबा हरभजन सिंह, 9 फरवरी 1966 को भारतीय सेना के पंजाब रेजिमेंट में सिपाही के पद पर भर्ती हुए थे. ... 4 अक्टूबर 1968 को खच्चरों का काफिला ले जाते वक्त पूर्वी सिक्किम के नाथू ला पास के पास उनका पांव फिसल गया और घाटी ... सेना ने 1982 में उनकी समाधि को 9 किलोमीटर नीचे बनवाया दिया, जिसे अब बाबा हरभजन मंदिर के नाम से जाना जाता है.
Chaaan
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